भारत में मानव तस्करी, विशेष रूप से लड़कियों और बच्चों की तस्करी, वर्षों से गंभीर सामाजिक समस्या बनी हुई है। इसे रोकने और दोषियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए सरकार ने भारतीय दंड संहिता (IPC) को हटाकर भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 लागू की है। यह कानून मार्च 2025 से प्रभाव में आया है और इसमें मानव तस्करी को सार्वजनिक अपराध की श्रेणी में रखा गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कानून ज़मीनी स्तर पर उतना ही प्रभावी साबित हो रहा है, जितनी इससे अपेक्षा थी?
नए कानून (BNS 2023) में क्या बदलाव हुए हैं?
BNS 2023 के तहत मानव तस्करी की परिभाषा को और व्यापक किया गया है। इसमें जबरन मजदूरी, यौन शोषण, देह व्यापार, अंगों की तस्करी, और भीख मांगने जैसे मामलों को स्पष्ट रूप से अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है। लड़कियों और बच्चों को झांसा देकर, मजबूर करके या धोखे से कहीं ले जाना अब गंभीर दंडनीय अपराध है। नए कानून में सजा की अवधि बढ़ाई गई है और न्यूनतम सजा तय की गई है, ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके और अपराधियों में भय बना रहे।
मीडिया रिपोर्ट में क्या सामने आया?
मीडिया रिपोर्ट्स से स्पष्ट होता है कि कानून तो कड़ा हो गया है, लेकिन उसे लागू करने में कई खामियां नजर आ रही हैं। ABP Live की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस और संबंधित एजेंसियों द्वारा rescued बच्चियों को अक्सर Child Welfare Committee (CWC) के समक्ष पेश नहीं किया जाता। इससे उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है और कई मामलों में पीड़ित दोबारा तस्करों के जाल में फंस जाती हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी ऐसे मामलों में दिल्ली पुलिस की लापरवाही पर नाराजगी जताते हुए सख्त निर्देश जारी किए हैं।
बिहार का आंकड़ा चिंताजनक, कार्रवाई धीमी
बिहार मानव तस्करी के मामले में देश के सबसे संवेदनशील राज्यों में शामिल है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2021 की रिपोर्ट बताती है कि बिहार से कुल 14,869 लोग गायब हुए, जिनमें से 9,808 लड़कियां थीं। चिंता की बात यह है कि राज्य में इतने बड़े पैमाने पर लड़कियों के गायब होने के बावजूद सजा की दर बेहद कम है। 2021 में बिहार से 384 लोगों को तस्करी से मुक्त कराया गया, जिनमें 311 नाबालिग शामिल थे। इनमें भी 112 लड़कियों को देह व्यापार से छुड़ाया गया, लेकिन एक भी दोषी को सजा नहीं मिल सकी।
ऑर्केस्ट्रा और डांस के नाम पर नाबालिग लड़कियों की तस्करी
बिहार में तस्करी का एक और खतरनाक पहलू सामने आया है — ऑर्केस्ट्रा ग्रुप्स और डांस कार्यक्रमों के नाम पर नाबालिग लड़कियों की तस्करी और शोषण। हाल ही में पटना हाई कोर्ट ने सरकार से इस पर जवाब तलब किया है। मई 2025 में सारण पुलिस ने एक बड़े ऑपरेशन में 16 नाबालिग लड़कियों को ऑर्केस्ट्रा के जरिए चल रहे सेक्स रैकेट से मुक्त कराया। इस दौरान दो संचालकों की गिरफ्तारी भी हुई। इससे साफ है कि तस्करी के नेटवर्क सिर्फ सीमावर्ती जिलों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि राज्य के भीतर भी गहराई से फैले हैं।
रेड-लाइट एरिया और अन्य तस्करी मामले
सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर और मोतिहारी जैसे जिलों में भी रेड-लाइट इलाकों से नाबालिग लड़कियों को रेस्क्यू किया गया है। पुलिस ने कई ऐसे गिरोहों का भंडाफोड़ किया है, जो लड़कियों को बहला-फुसलाकर बाहर ले जाते थे और देह व्यापार में धकेल देते थे। हालांकि, इन कार्रवाइयों के बावजूद दोषियों के खिलाफ त्वरित और सख्त सजा की दर बहुत कम है, जिससे अपराधियों के हौसले बुलंद हैं।

POCSO एक्ट के तहत मामले बढ़े, सजा फिर भी कम
बिहार में बाल यौन शोषण से जुड़े मामलों में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। 2023 के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त तक 1,283 POCSO मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 1,132 में आरोप पत्र दाखिल किए गए। वहीं, मानव तस्करी के मामलों में 2022 में 260 और 2023 में अगस्त तक 198 एफआईआर दर्ज की गईं। हालांकि, rescued पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक रही, लेकिन नाबालिग लड़कियों के शोषण और तस्करी के मामले लगातार सामने आ रहे हैं।
BNS 2023 की प्रभावशीलता पर सवाल
कागज़ों पर देखा जाए तो BNS 2023 तस्करी रोकने के लिए एक मजबूत कानून है। पर व्यवहार में इसकी प्रभावशीलता अभी भी संदेह के घेरे में है। दिल्ली हाई कोर्ट और पटना हाई कोर्ट की हालिया टिप्पणियां बताती हैं कि बचाव के बाद बच्चियों की उचित देखरेख नहीं हो रही है, पुलिस की लापरवाही और सिस्टम की कमजोरी लगातार उजागर हो रही है। बिहार में तो स्थिति और गंभीर है, जहां बड़ी संख्या में लड़कियां गायब होती हैं, rescued होती हैं, लेकिन दोषियों को सजा न मिलना सिस्टम पर सवाल खड़े करता है।

क्या होना चाहिए आगे?
BNS 2023 की असली सफलता तभी मानी जाएगी जब इसके प्रावधानों को कड़ाई से लागू किया जाए। इसके लिए ज़रूरी है कि हर जिले में Anti-Human Trafficking यूनिट्स को मजबूत किया जाए, पुलिस और प्रशासन को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए और rescued बच्चियों की सुरक्षा, पुनर्वास और कानूनी सहायता सुनिश्चित की जाए। इसके अलावा, दोषियों को त्वरित सजा दिलाने के लिए विशेष अदालतों और फास्ट-ट्रैक सिस्टम को सक्रिय करना होगा।
BNS 2023 ने लड़कियों की तस्करी और बच्चों की सुरक्षा को लेकर कानूनी ढांचे में अहम सुधार किए हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर इन सुधारों को प्रभावशाली बनाने के लिए ठोस राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक चुस्ती और सामाजिक जागरूकता जरूरी है। जब तक पुलिस, न्यायपालिका और समाज मिलकर इस दिशा में ईमानदारी से काम नहीं करेंगे, तब तक कानून केवल किताबों में ही मजबूत रहेगा, ज़िंदगी में नहीं।

लेखक के बारे में – अमित कुमार सिंह
श्री कुमार वर्तमान में पीआरपी ग्रुप में पब्लिक रिलेशन एक्सपर्ट के पद पर कार्यरत हैं।