Salwa Judum Verdict Row: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने सलवा जुडूम के फैसले को लेकर टिप्पणी की है, जिसके बाद से सियासत और न्यायपालिका के गलियारों में हलचल तेज हो गई है। विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी ने शनिवार को कहा कि जिस फैसले को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, वह उनका व्यक्तिगत नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय है।
रेड्डी (B. Sudarshan Reddy) ने साफ कहा कि अगर गृहमंत्री ने 40 पन्नों का पूरा फैसला पढ़ा होता तो शायद इस तरह की टिप्पणी नहीं करते। उन्होंने यह भी कहा कि वह इस मामले में ज्यादा बोलकर बहस की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते, क्योंकि राजनीति से इतर शालीनता बनाए रखने की जरूरत है।
सलवा जुडूम को असंवैधानिक करार देते हुए SC ने सुनाया था फैसला
गौरतलब है कि साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम को असंवैधानिक करार देते हुए समाप्त करने का आदेश दिया था। जस्टिस रेड्डी और जस्टिस एस.एस. निज्जर की बेंच ने सुनवाई के बाद यह आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारियों के रूप में इस्तेमाल करना कानून के खिलाफ है। इससे उनके जीवन व अधिकारों का हनन होता है। इस आदेश को याद दिलाते हुए गृहमंत्री शाह ने रेड्डी पर नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया और कहा था कि अगर यह फैसला नहीं आता तो 2020 तक माओवादी आतंकवाद समाप्त हो गया होता।
फैसला कहीं भी नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन नहीं
शाह के इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट और देश के विभिन्न हाई कोर्ट के 18 पूर्व न्यायाधीशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर गृह मंत्री की आलोचना की है। इन न्यायाधीशों ने कहा कि सलवा जुडूम पर दिया गया फैसला कहीं भी नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन नहीं करता, बल्कि यह पूरी तरह संवैधानिक सिद्धांतों और मानवाधिकारों पर आधारित निर्णय था। उनका कहना था कि फैसले की गलत व्याख्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल असर डाल सकती है और यह प्रवृत्ति दुर्भाग्यपूर्ण है।
प्रोफेसर मोहन गोपाल और वरिष्ठ अधिवक्ता हेगड़े ने भी किया बयान का विरोध
इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व जज शामिल हैं, जिनमें जस्टिस ए.के. पटनायक, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस मदन बी. लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस विक्रमजीत सेन जैसे नाम प्रमुख हैं। इनके अलावा तीन हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर, एस. मुरलीधर और संजीव बनर्जी भी इसमें शामिल हैं। इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में प्रोफेसर मोहन गोपाल और वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े भी शामिल हैं।
किसी व्यक्ति का नहीं, सुप्रीम कोर्ट का था फैसला
पूर्व न्यायाधीशों ने यह भी याद दिलाया कि यह फैसला किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट का था और 2007 से चली आ रही जनहित याचिकाओं की सुनवाई का हिस्सा था। इस दौरान बार-बार अदालत ने साफ कहा था कि सलवा जुडूम को राज्य का समर्थन देना अपराध को बढ़ावा देने जैसा है। इसी सिलसिले में 2011 में अंतिम आदेश आया, जिसमें इस अभियान को गैरकानूनी करार दिया गया।
उपराष्ट्रपति चुनाव पर होगा असर
इस पूरे विवाद का असर अब उपराष्ट्रपति चुनाव के अभियान के दौरान भी देखने को मिलेगा, क्योंकि विपक्षी उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को लेकर शुरू हुआ विवाद अब सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने अब न्यायपालिका और विधायिका के रिश्तों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। बता दें कि 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति के लिए मतदान होना है। इस बार उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच मुकाबला है।
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