पटना : राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, बिहार ने चकबंदी वाले गांवों में भूमि अधिग्रहण से जुड़े विवादों के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। विभाग ने यह निर्देश दिया है कि ऐसे मामलों में, जहां राजस्व खतियान, ऑनलाइन जमाबंदी और जमीन पर वास्तविक कब्जा तीनों में अंतर हो, वहां मुआवजे का भुगतान उसी व्यक्ति को किया जाएगा जो वास्तव में जमीन पर काबिज़ है, न कि केवल कागजी रिकॉर्ड के आधार पर किसी अन्य को।
क्यों लिया गया यह फैसला?
बिहार में बिहार चकबंदी अधिनियम, 1956 के तहत अब तक 5657 गांवों में चकबंदी की प्रक्रिया शुरू की गई थी, जिनमें से 2158 गांवों में यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। हालांकि, कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां जमीन पर कब्जा, खतियान और जमाबंदी के रिकॉर्ड आपस में मेल नहीं खाते, जिससे भू-अर्जन और मुआवजे के भुगतान में गंभीर बाधाएं उत्पन्न हो रही थीं।
क्या होगा नया नियम?
अब से जब किसी खेसरा या खेसरा अंश का भू-अर्जन किया जाएगा, तो जमीन पर वास्तविक रूप से कब्जा रखने वाले रैयत को ही मुआवजे का हकदार माना जाएगा — बशर्ते कि वह अतिक्रमणकर्ता न हो और उसका दावा पुराने खतियान या उससे जुड़े दस्तावेज़ों से प्रमाणित हो।
सभी जिलों के समाहर्ताओं को भेजा गया निर्देश
यह निर्देश 17 जुलाई 2025 को अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह द्वारा राज्य के सभी जिलों के समाहर्ताओं को भेजा गया, जिसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि इस अंतरिम व्यवस्था को तुरंत लागू किया जाए, ताकि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में आ रही बाधाओं को दूर किया जा सके और विकास कार्यों में विलंब न हो।
न्यायसंगत विकल्प के तौर पर यह अंतरिम व्यवस्था
हालांकि, विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह समाधान स्थायी नहीं है, बल्कि जब तक बिहार चकबंदी अधिनियम में विधिवत संशोधन नहीं हो जाता, तब तक एक व्यावहारिक और न्यायसंगत विकल्प के तौर पर यह अंतरिम व्यवस्था अपनाई गई है। यह कदम विशेष रूप से उन गांवों में लागू होगा जहां चकबंदी की अधिसूचना जारी हो चुकी है, लेकिन ज़मीन पर कब्जा अभी भी पुराने खतियान या रिकॉर्ड के आधार पर बना हुआ है।
[…] […]