पटना : संजय सरावगी, मंत्री, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग द्वारा पटना के सर्वे भवन, शास्त्री नगर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान एकीकृत भू–अभिलेख प्रबंधन प्रणाली (ILRMS)–स्थानिक दाखिल–खारिज पोर्टल की औपचारिक शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य है भूमि से जुड़े दस्तावेजों और मानचित्रों को डिजिटल माध्यम से पारदर्शी, सटीक और विवादरहित बनाना। इसके तहत भूमि की खरीद-बिक्री के साथ राजस्व मानचित्र और रिकॉर्ड स्वतः अपडेट होंगे। ऐसे में बिहार देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जो GIS-आधारित स्वचालित म्यूटेशन व्यवस्था लागू कर रहा है।

भू-अभिलेख डिजिटलीकरण की ओर बड़ा कदम
इस दौरान मंत्री, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने कहा, “बिहार झोला युग से निकलकर अब लैपटॉप युग में प्रवेश कर चुका है। ILRMS पोर्टल राज्य में पारंपरिक दाखिल–खारिज प्रणाली की जटिलताओं और विवादों को समाप्त करेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि खास बात यह है कि यह प्रणाली विशेष सर्वेक्षण के तहत तैयार किए गए अंतिम अधिकार अभिलेखों पर आधारित होगी। इसके जरिए बिहार के आम नागरिकों को भूमि लेनदेन में पारदर्शिता, सुविधा और त्वरित सेवा मिलेगी।
अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहा, “इस प्रणाली को उन सभी गांवों में लॉन्च करने का प्लान है जहां विशेष सर्वेक्षण के तहत अंतिम अधिकार अभिलेख प्रकाशित हो गया है।” अपर मुख्य सचिव ने कहा कि ये टीम की लंबी मेहनत का परिणाम है। इसके लिए पूरी टीम बधाई के पात्र है।
सचिव जय सिंह ने कहा, “विभाग का आईआईटी, रुड़की से समन्वय राजस्व के कार्यों को नई प्रगति दे रहा है। इस प्रणाली से एक भाई अगर अपना हिस्सा बेचता है तो उसका नक्शा भी स्वतः उसके साथ लग जाएगा। जॉइंट प्रॉपर्टी में किसने अपना कहाँ का हिस्सा बेचा यह जानकारी आसानी से पता चल पायेगी।”
कहां से हो रही है शुरुआत?
वर्तमान में इस प्रणाली की शुरुआत तीन जिलों के 80 से अधिक गांवों में की गई है। आगे चलकर उन सभी क्षेत्रों में इसे लागू किया जाएगा, जहां विशेष सर्वेक्षण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक फीडबैक के आधार पर क्रमशः इसका विस्तार और सुधार किया जाएगा।

क्या है स्थानिक दाखिल–खारिज (Spatial Mutation)?
स्थानिक दाखिल–खारिज एक तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें भूमि की बिक्री या उत्तराधिकार के बाद राजस्व मानचित्र एवं अभिलेख स्वतः अपडेट हो जाते हैं। इसमें Pre-Mutation Sketch की व्यवस्था है, जिसमें बिक्री से पहले ज़मीन का नक्शा तैयार होता है और उसी आधार पर निबंधन एवं दाखिल–खारिज होता है। इस प्रक्रिया में सरकारी भूमि आम रैयतों के लॉगिन से बाहर रहेगी, जिससे छेड़छाड़ की संभावना समाप्त हो जाएगी।

ILRMS के नागरिकों को क्या लाभ होंगे?
- भू-विवादों में कमी: नक्शा और रिकॉर्ड अपडेट होने से भ्रम और विवाद घटेंगे।
- पारदर्शी लेनदेन: खरीदार को भूमि का सटीक नक्शा मिलेगा।
- सरकारी योजनाओं का बेहतर लक्ष्य निर्धारण: पात्र लाभार्थियों की पहचान आसान होगी।
- अतिक्रमण पर रोक: सरकारी परिसंपत्तियों की पहचान स्पष्ट होगी।
- राजस्व वसूली में वृद्धि: अद्यतन रिकॉर्ड से लगान की सूचना और भुगतान में सहूलियत होगी।
- राजस्व न्यायालयों का बोझ घटेगा: विवाद की संख्या में उल्लेखनीय कमी आएगी।
IIT रुड़की की तकनीकी सहभागिता
ILRMS का तकनीकी विकास IIT रुड़की द्वारा किया गया है। इसमें Make in India के तहत तैयार GIS सॉल्यूशन का उपयोग हुआ है, जिससे यह प्रणाली पूरी तरह स्वदेशी और दीर्घकालिक रूप से आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो गई है। IIT रुड़की के प्रो. कमल जैन ने बताया कि अब इस सॉफ्टवेयर के लिए विदेशी लाइसेंस या वार्षिक शुल्क की आवश्यकता नहीं होगी।
कार्यक्रम में भू–अभिलेख एवं परिमाप निदेशालय की निदेशक जे. प्रियदर्शिनी, सचिव दिनेश कुमार राय, विशेष सचिव अरुण कुमार सिंह, संयुक्त सचिव अनिल कुमार पांडेय, आजीव वत्सराज समेत अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।
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