Bihar Vidhan Sabha: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले का आखिरी मानसून सत्र (Bihar Monsoon Session 2025) आज 21 से 25 जुलाई तक चलेगा। पांच दिनों तक चलने वाला यह सत्र 17वीं विधानसभा का आखिरी सत्र है। इसके बाद 2025 चुनाव में जीतकर आने वाले विधायकों को ही विधानसभा में बैठने का मौका मिलेगा। साल के इस आखिरी सत्र में बिहार की जनता को ‘चुनावी शिगूफा’ के अलावा क्या-क्या नसीब होगा, यह तो भविष्य की गर्भ में है। लेकिन, हाल के दिनों में सूबे में बिगड़े कानून व्यवस्था को देखते हुए इस सत्र के हंगामेदार होने की पूरी संभावना है। ऐसे में बिहार के माननीय विधायकों के पास पार्टी और जनता दोनों के प्रति अपनी जवाबदेही दिखाने का यह आखिरी मौका है।
संसदीय प्रणाली में विधायिका जनता का प्रतिनिधि होती है और लोकतंत्र की दुहाई देने वाले विधायकों का यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र व राज्य के विकास हेतु कार्य करें और विधानसभा की सत्रों में उपस्थित होकर अपने लोगों की आवाज बुलंद करें। लेकिन जरा सोचिए, जब वही विधायक अपने कार्य दिवस से ज्यादा दिनों का भत्ता लेने लगे तो उसे आप नैतिकता के किस सांचे में ढालेंगे?
दरअसल, पांच दिनों तक चलने वाले इस मानसून सत्र के लिए विधायकों और विधान पार्षदों को सात दिन का भत्ता मिलेगा। यह कोई पहली बार नहीं है और न ही इसमें कुछ गलत है। यह बिल्कुल सरकारी नियम के तहत है और इस सत्र के दौरान इसपर कुल 66 लाख 78 हजार रुपए खर्च होंगे।
दूसरे सत्रों के दौरान भी मिलता है दो दिन का एक्स्ट्रा भत्ता
बिहार विधानसभा के नियम के मुताबिक, विधायकों को विधानसभा का सत्र शुरू होने के एक दिन पहले से लेकर एक दिन बाद तक का भत्ता दिया जाता है। इस तरह 21 से 25 जुलाई तक के सत्र के लिए विधायकों को 20 जुलाई से 26 जुलाई तक का भत्ता सरकारी खजाने से दिया जाएगा। बिहार विधानसभा की ओर से हर विधायक और विधान पार्षद को सत्र के दौरान तीन हजार रुपए प्रतिदिन मिलते हैं। इस तरह 243 विधायकों और 75 विधान पार्षदों पर तीन हजार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दो दिनों का 19 लाख आठ हजार रुपए अधिक खर्च होंगे। यह राशि विधायकों और विधान पार्षदों को उन दो दिनों के लिए मिलेगी, जिसमें उन्होंने कुछ भी नहीं किया। ऐसा नहीं है यह केवल वर्तमान सत्र के लिए है, अन्य दूसरे सत्रों के दौरान भी ऐसा ही होता रहा है।
फिजूलखर्ची को कम करने के लिए लाया जाता है कटौती का प्रस्ताव
इस संबंध में एक और भी हास्यास्पद बात नज़र आती हैं। सरकार की फिजूलखर्ची को जनता की नजर में लाने के लिए ये विधायक अक्सर बजट या अनुपूरक बजट का विरोध करते हैं। इसके लिए उनकी ओर से सांकेतिक तौर पर एक रुपए के कटौती का प्रस्ताव लाया जाता है। इसका मकसद होता है कि सरकार की फिजूलखर्ची कम हो। लेकिन, वही विधायक विधानसभा सत्र के दौरान दो दिन एक्स्ट्रा मिलने वाले भत्ते पर सवाल उठाने की उदारता नहीं दिखा पाते।
एक दिन पहले आने और एक दिन बाद जाने का तर्क अब बेतूका
गौरतलब है कि हर विधानसभा सत्र के दौरान दो दिन का एक्स्ट्रा भत्ता मिलने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि विधायकों को सत्र से एक दिन पहले आकर पटना में रुकना पड़ता है और सत्र खत्म होने के एक दिन बाद तक यहीं रुकना पड़ता है। अब यह तर्क बेतूका लगता है। क्योंकि, हर विधायक को सरकार की तरफ से पटना में आवास उपलब्ध कराया गया है और ज्यादातर तो सपरिवार यहीं रहते भी हैं। अगर क्षेत्र में जाते हैं तो उसका भी उन्हें अलग से भत्ता मिलता है। पार्टियों की बैठकें भी अधिकतर पटना में ही होती हैं, जिसके लिए संबंधित विधायक यहीं रहते हैं।
यह भत्ता विधान पार्षदों को भी मिलता है। उनमें से कई मनोनीत हैं और कई विशेष निर्वाचन क्षेत्र में जीतकर आते हैं। एक बार को मान लीजिए कि जनता के सुख-दुख में शामिल होने विधान पार्षदों को भी क्षेत्र में जाना पड़ता है। उनके लिए यह व्यवस्था होनी चाहिए। पर, यह तर्क और भी तर्कहीन लगता है, क्योंकि नीतीश सरकार का दावा है कि बिहार के हर जिला मुख्यालय की राजधानी पटना से दूरी अब महज छः घंटे की है, जिसे घटाकर पांच घंटे किया जा रहा है।
ऐसे में नैतिकता का तकाजा तो यही है कि जितने दिन सत्र चले, सभी माननीय को उतने दिन का ही भत्ता मिले।
लेखक : सागर सिंह, वर्तमान में ये पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े हैं। देश के कई बड़े मीडिया संस्थानों में काम करने का अनुभव हैं।
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