पटना : बिहार में वोटर लिस्ट (Voter List) पर फिर से बवाल मचा है। महागठबंधन ने आज चुनाव आयोग से सीधा सवाल पूछा कि आखिर मतदाता बनने के लिए सरकार किन-किन दस्तावेजों को मानेगी? बड़ी बात ये कि आधार कार्ड जैसी अहम सरकारी पहचान भी इस प्रक्रिया में खारिज की जा रही है। महागठबंधन ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है और चेतावनी दी है कि अगर ग़रीबों और प्रवासियों के वोट काटने की साज़िश नहीं रुकी, तो सड़कों पर आंदोलन होगा।
’18 साल पूरे हैं, आधार है… फिर भी वोटर नहीं?’
महागठबंधन नेताओं ने चुनाव आयोग को घेरते हुए कहा कि देश में कोई 18 साल का होता है, तो आधार कार्ड सबसे पहले बनता है। पासपोर्ट, बैंक अकाउंट से लेकर सिम कार्ड तक इसी आधार पर मिलता है। लेकिन जब वोटर लिस्ट (Voter List) में नाम जुड़वाने की बात आती है, तो यही आधार कार्ड खारिज कर दिया जाता है। सवाल ये है कि अगर आधार पर भरोसा नहीं, तो फिर सरकार उसे बनवाती क्यों है?

‘केवल 11 दस्तावेज़ ही मान्य, बाक़ी सब खारिज’, किस कानून में लिखा है?
महागठबंधन का आरोप है कि चुनाव आयोग ने केवल 11 दस्तावेजों की सूची तय कर दी है, बाक़ी सारे सरकारी पहचान पत्र खारिज किए जा रहे हैं। नेताओं ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 या जनप्रतिनिधित्व कानून में ऐसा कोई साफ नियम नहीं है। फिर यह सूची किसने और किस आधार पर बनाई?
प्रवासी मजदूर परेशान : ‘काम छोड़ बिहार लौटो या वोट कटवाओ’
बिहार के करीब 4 करोड़ लोग दूसरे राज्यों में काम करते हैं। अब आयोग ने 18 दिन में वोटर लिस्ट (Voter List) के सत्यापन का समय दिया है। सवाल है कि क्या ये लोग इतनी जल्दी बिहार लौट सकते हैं? क्या उनके लिए कोई सरकारी सुविधा है? या फिर यह पूरी प्रक्रिया ही इस मकसद से बनाई गई है कि बाहर रहने वालों का नाम आसानी से काटा जा सके?

फोटो, कागज़, फोटोकॉपी… सब गरीब के सिर की मुसीबत
इस बार वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए रंगीन फोटो, सफेद बैकग्राउंड में फोटो, और दस्तावेजों की फोटोकॉपी जरूरी कर दी गई है। महागठबंधन नेताओं ने कहा कि गांव में हर किसी के पास फोटो नहीं है, फोटो स्टूडियो जाना, पैसे खर्च करना… ये सब गरीब तबके के लिए बोझ है। “क्या लोकतंत्र में वोटर बनने के लिए इतना खर्च और झंझट जरूरी है?” यही सवाल उठाया गया।
कौन हैं ये BLO के साथ घूम रहे 4-4 स्वयंसेवक?
चुनाव आयोग ने हर BLO के साथ 4 वॉलंटियर्स यानी स्वयंसेवक लगाए हैं। महागठबंधन ने पूछा कि ये लोग कौन हैं? क्या ये सरकारी कर्मचारी हैं या किसी संगठन से जुड़े हैं? क्या इनकी कोई सूची सार्वजनिक की गई है? अगर नहीं, तो कैसे भरोसा किया जाए कि ये निष्पक्ष काम कर रहे हैं?
‘डैशबोर्ड पर रोज़ बताओ, कितने नाम जुड़े, कितने कटे’
नेताओं ने यह भी मांग की कि वोटर लिस्ट (Voter List) की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो। आयोग को हर दिन डैशबोर्ड पर ये आंकड़े देने चाहिए कि कितने लोगों का सत्यापन हुआ, कितने नाम जुड़े और कितने काटे गए।

महागठबंधन का सीधा अल्टीमेटम : गरीब, मजदूर, ग्रामीण का वोट छीना तो सड़कों पर उतरेंगे
महागठबंधन नेताओं ने दो टूक कहा,
“निर्वाचन आयोग संविधान से ऊपर नहीं है। अगर गरीब, मजदूर, प्रवासी या ग्रामीण तबके का वोट काटने की कोई भी साज़िश की गई तो पूरे बिहार में आंदोलन होगा। हम लोकतंत्र को कमजोर नहीं होने देंगे।”
इस मुलाकात के बाद अब सबकी नजर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया पर टिकी है। देखना होगा कि आयोग दस्तावेजों की सूची और प्रवासियों को लेकर उठे सवालों का क्या जवाब देता है।