भारत ने 2025 में एक ऐसी महत्वाकांक्षी नीति की घोषणा की है, जिसे देश के खेल क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव का वाहक माना जा रहा है। ‘राष्ट्रीय खेल नीति 2025’ न केवल खेल प्रदर्शन सुधारने का खाका पेश करती है, बल्कि यह भारत को 2047 तक वैश्विक खेल महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का रोडमैप भी प्रस्तुत करती है। यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब देश में खेलों को लेकर उत्साह बढ़ा है, परंतु ढांचागत और नीति-स्तर पर अब भी कई कमियां बनी हुई हैं। इस लेख में हम गहराई से समझेंगे कि यह नीति कितनी व्यवहारिक है, इसमें किन पहलुओं को महत्व दिया गया है और भारत की मौजूदा स्थिति क्या है।
नीति का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य : चार दशक की यात्रा
भारत में खेल नीति का इतिहास 1984 से शुरू होता है, जब एशियाई खेलों 1982 की आंशिक सफलता के बाद सरकार ने पहली बार संगठित रूप से खेल विकास की दिशा में कदम बढ़ाया। उस दौर में खेलों को देश के विकास एजेंडे में खास प्राथमिकता नहीं मिली थी। 2001 में नीति में संशोधन किया गया, परंतु संरचनात्मक सुधार न होने के कारण इसका प्रभाव सीमित रहा। खेलों को तब भी अधिकतर शारीरिक स्वास्थ्य या समय-व्यतीत का माध्यम माना जाता था। अब 2025 की नीति खेलों को आर्थिक विकास, सामाजिक समावेशन और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा का साधन मानने की परिपक्व सोच के साथ सामने आई है।

राष्ट्रीय खेल नीति 2025 के पांच स्तंभ : ठोस बदलाव की दिशा में प्रयास
पहला स्तंभ : खेल प्रतिभा की समय रहते पहचान
नई नीति को पांच स्तंभों पर आधारित किया गया है, जिनमें हर पहलू खेल पारिस्थितिकी तंत्र को समग्र रूप से बदलने की क्षमता रखता है। सबसे पहला स्तंभ है खेल प्रतिभा की समय रहते पहचान। भारत के गांवों, कस्बों और आदिवासी क्षेत्रों में खेल प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, परंतु संसाधनों और उचित मंच के अभाव में ये प्रतिभाएं गुमनाम रह जाती हैं। इस नीति के तहत स्थानीय स्तर पर प्रतिभा खोजने, पारदर्शी चयन प्रक्रिया लागू करने और स्कूल-कॉलेज स्तर पर प्रतियोगिताओं को बढ़ावा देने की बात कही गई है।
दूसरा स्तंभ : खेलों को आर्थिक विकास का इंजन बनाना
दूसरा स्तंभ खेलों को आर्थिक विकास का इंजन बनाना है। वैश्विक स्तर पर खेल उद्योग अरबों डॉलर का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी बेहद कम है। नई नीति के तहत खेल पर्यटन, विनिर्माण, स्टार्टअप और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की मेज़बानी के ज़रिए इस हिस्सेदारी को बढ़ाने की योजना है। IPL जैसे आयोजनों ने यह साबित किया है कि भारत खेलों से आर्थिक लाभ उठा सकता है।

तीसरा स्तंभ : सामाजिक समावेशन
तीसरा स्तंभ सामाजिक समावेशन पर केंद्रित है। खेलों को महिलाओं, दिव्यांगजनों, आदिवासी समुदायों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए अवसर का साधन बनाया जाएगा। इसके तहत पारंपरिक खेलों को पुनर्जीवित करने, प्रवासी भारतीयों को जोड़ने और शिक्षा में खेल को औपचारिक रूप से शामिल करने का प्रस्ताव है।
चौथा स्तंभ : खेलों को जनआंदोलन बनाना
चौथा स्तंभ खेलों को जनआंदोलन बनाने का है। फिट इंडिया और खेलो इंडिया अभियान की तर्ज पर देशभर में खेल सुविधाओं की पहुंच बढ़ाने, स्कूल-कॉलेजों में फिटनेस इंडेक्स लागू करने और खेल संस्कृति को दैनिक जीवन में शामिल करने पर जोर दिया गया है।
पांचवां स्तंभ : शिक्षा के साथ खेल का समन्वय
पांचवां और महत्वपूर्ण स्तंभ शिक्षा और खेल के समन्वय पर आधारित है। NEP 2020 के तहत खेलों को शिक्षा का अभिन्न हिस्सा बनाया जाएगा, जिससे बच्चों में जीवन कौशल, अनुशासन और नेतृत्व क्षमता विकसित होगी।

2036 ओलंपिक : सपनों से आगे की तैयारी
भारत ने 2036 ओलंपिक की मेज़बानी का सपना देखा है, जो केवल आयोजन की बात नहीं, बल्कि खेल अधोसंरचना, प्रशासनिक दक्षता, तकनीक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का कठोर परीक्षण होगा। बीजिंग ओलंपिक 2008 से पहले चीन ने जो तैयारी की थी, वह भारत के लिए प्रेरणा हो सकती है। यदि नई नीति के तहत दीर्घकालिक रणनीति और निवेश सही दिशा में होता है तो भारत न केवल मेज़बानी, बल्कि पदक तालिका में भी सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकता है।
खेल प्रशासन में सुधार : राजनीति बनाम पेशेवर दृष्टिकोण
खेल महासंघों में वर्षों से भाई-भतीजावाद, राजनीतिक हस्तक्षेप और पारदर्शिता की कमी भारत की प्रगति में बाधक रही है। नई नीति में खेल प्रशासकों की जवाबदेही तय करने, नैतिक आचार संहिता लागू करने और अंतर-मंत्रालयी समन्वय स्थापित करने का प्रस्ताव है। लेकिन यहां संतुलन जरूरी है ताकि सुधार के नाम पर अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप से खेल की स्वायत्तता प्रभावित न हो।

भारत की मौजूदा स्थिति : आंकड़ों की हकीकत
ओलंपिक इतिहास में भारत ने अब तक केवल 35 पदक ही जीते हैं, जबकि अमेरिका और चीन जैसे देश सैकड़ों पदक अपने नाम कर चुके हैं। टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, पर वैश्विक मानकों की तुलना में यह उपलब्धि अभी सीमित ही है। खेलों का वैश्विक बाजार 600 अरब डॉलर से अधिक का है, जिसमें भारत की भागीदारी लगभग नगण्य है। सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण इलाकों में खेल सुविधाओं के घोर अभाव की है, जहां करोड़ों युवा प्रतिभाएं अवसरों और संसाधनों की कमी के कारण कभी सामने नहीं आ पातीं। यही कारण है कि भारत खेल के क्षेत्र में अपनी वास्तविक क्षमता का दोहन नहीं कर पा रहा है।
सकारात्मक संभावनाएं, मगर रास्ता चुनौतियों से भरा
नई खेल नीति भारत के लिए सुनहरा अवसर है, लेकिन इसके रास्ते में गंभीर चुनौतियां भी हैं। ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में खेल अधोसंरचना का निर्माण, समाज में खेल को स्थायी करियर विकल्प के रूप में स्थापित करना, प्रशिक्षित कोच, खेल विज्ञान और स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास, खेल महासंघों में राजनीतिक दखल को सीमित कर पारदर्शिता सुनिश्चित करना और महिला खिलाड़ियों को सुरक्षा व प्रोत्साहन देना ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सुधार किए बिना यह नीति केवल दस्तावेज बनकर रह सकती है। यदि सरकार, समाज और खेल प्रशासक मिलकर इन चुनौतियों का समाधान करते हैं, तभी भारत खेल महाशक्ति बनने के सपने को साकार कर सकेगा।
राष्ट्रीय खेल नीति 2025 में भारत की खेल क्षमता को वैश्विक स्तर पर चमकाने की वास्तविक संभावना है। लेकिन सिर्फ घोषणाओं से खेल संस्कृति नहीं बनती, उसके लिए प्रशासनिक इच्छाशक्ति, वित्तीय निवेश, तकनीकी समर्थन और सबसे बढ़कर सामाजिक मानसिकता में बदलाव जरूरी है। यदि नीति ईमानदारी से लागू होती है, तो 2047 में भारत ‘खेल महाशक्ति’ बनने के सपने के बेहद करीब होगा। अन्यथा, यह नीति भी बीते वर्षों की तरह कागज़ी दस्तावेज बनकर रह सकती है।
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लेखक के बारे में : श्री अमित कुमार सिंह,
श्री कुमार PRP Group में बतौर पीआर एक्सपर्ट के रूप में कार्यरत हैं।
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